सुनहरी यादें- सर्वेश शर्मा । Aaj Sahitya
रचना शीर्षक :- सुनहरी यादें
दोपहर की धूप में,हम कभी साथ नंगे पांव,घूमते थे,
सावन की वरसात में हाथ पकड़ें, हर वक्त भीगते थे
कभी खाते थे अम्बियाँ,कभी देसी आम चूसते थे
सर्द हवाओं के झोंकों में,कांपते हाथों को चूमते थे
छिप जाते थे पेड़ों के पीछे,इक दूजे को ढुंढते थे
वारिश के पानी में लेट,होठों से वूंदों को चूमते थे
आज भी मुझे याद आता है जो तेरा प्यारा गांव
ननिहाल से लोटते को, मिलने तुँ आई नंगें पांव
,वो कलम से,फट्टी पे तेरी,मेरा नाम साथ लिखना
मैडम से कलास में,मुर्गा वन,हम दोनों का पिटना
वो वचपन का सुनहरा दौर,वो मीठी प्यारी सी यादे
तेरी फीस भर दी मैने,जब अपनी,वेचकर किताबें
वो मम्मी ने मेरी जब,घर को था,सिर पर उठाया
वस्ता देख खाली, मेरे मुख पर था थप्पड़ लगाया
होंठ मैने भींचे जब,थप्पड़ मेरे गाल सह न पाये
मैं रोया न फिर भी,तेरे मोटे नैना भर भर आये
तड़फ के तेरा,मेरे आगे आकर मुझको वचाना
चपेड़ खाके खुद मेरी,मम्मी को सच सच वताना
सुनकर मम्मी का मुख,खुला खुला सा रह जाना
वाहों में भरकर,हमें अपने ही, सीने से लगाना
हमें चूम चूम कर,वहुत देर तक खुद रोते रहना
फिर छोटे छोटे गिलासों से हमें गर्म दूध पिलाना
पापा के आते ही,उनसे हमको पैसे दिलवाना
तुझे साथ ले जाकर,मेरी नई किताबें लेके आना
कहां मिलेगा,हमको वो,सुनहरा वचपन सुहाना
"सर्वेश"का तेरे साथ,वचपन में सुख दुख बंटाना
तेरी पोती संग,सड़क पर जो मेरा पोता मैने देखा
मुझे याद आ गई,उन्हे देख अपनी प्यारी सी रेखा
मेले में,मेरी वाजु पे था,जो तेरा नाम खुदवाया
उन दोनों ने,हम दोनो का,वचपन मुझे नजर आया
लेखक :-सर्वेश शर्मा वठिंडा ,पंजाब
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