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निभाना बहुत है - सर्वेश शर्मा । आज साहित्य

 

 रचना शीर्षक ~निभाना वहुत है


आपका, हमसे इस रंग 

वदलती दुनिया में ये 

दोस्ती निभाना 

ही वहुत है !                     

         

प्रभु का बिछुड़ी रूहों को,

अपनी कृपा से मिलाना 

ही बहुत है!

    एक दूसरे के जजवात

 समझ पाना ही बहुत है!


जब जब जख्म मिला हैं

 हममें से किसी एक को 

उस पर दूसरे का मरहम 

लगाना ही बहुत है!


जिस्मों के तलवगार मिले हैं

 हर कदम पे,हम दोनों को

हमारी रूहों का आपस

 में मिल कर एक हो 

जाना ही वहुत है!


जब उदास होकर ,तड़प के

 एक आंख भर ले,तो

 दूसरे का उसके आंसू 

पौंछ जाना बहुत है!


आज जिंदा है तो कभी 

फूल कभी खुशबु वन 

महक जाते है एक  दूसरे के 

जीवन में,कल मरकर 

एक का दूसरे पर फूल 

चढ़ाना ही बहुत है!


फिर भी एक की याद,

 जब कभी कुरेदेगी दूसरे 

के दिल को,न चाहते हुऐ 

भूला कर भी इक दूसरे को 

याद आना वहुत है!


जिंदगी के वाद मौत,और 

मरने के वाद जिंदगी 

पा लेगी जब ये रूहें,


उस जन्म में इस रुहानी 

रिश्ते का आपस में 

मिल जाना ही वहुत है!


'सर्वेश' जो मन में आता है,

लिख देता है, उसको पढ़कर

उसे समझ जाना ही वहुत है।


 लेखक :- सर्वेश शर्मा बठिंडा पंजाब

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