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सबसे बडा सबक - शशिलता पांडेय, बलिया | आज साहित्य

यह स्वररचित और मौलिक रचना श्रीमती कवियित्री शशिलता पाण्डेय , बलिया (उत्तर प्रदेश) द्वारा रचित है यह रचना प्रकृती पर आधारित रचना है । उम्मीद है आप सभी पाठकों को नये लेखकों की रचनाएँ पसंद आती होंगी । 


रचना - सबसे बड़ा सबक 🌷


तेरे दुख-सुख का करके मार्ग सरल,

नेमत प्रकृति ने अनगिनत भेंट दी है !

तूने जो नीच कृत्य किया मानव,

वह उसका बदला लेने लौटी है!

चुन-चुनकर लौटाती तेरा कर्म,

नही ये महामारी कोई छोटी है!

पल-पल रूप बदलती कुदरत,

ये कोरोना बीमारी बड़ी खोटी है!

जाने कितने काल के गाल समाये?

निर्धन को नही मिलती रोटी है!

इसका निश्चित कोई भी काल नही,

बीमारी, महामारी लम्बी या छोटी है!

निज अभिलाषा के कारण मानव

तुमने प्राकृतिक संपदा लूटी है!

छेड़छाड़ करके निज स्वार्थ में,

कानन की लकड़ी बेहिसाब काटी है!

तूने तटिनी का भी करके तटबंधन,

कर सृजन चंचला-चपला भी लूटी है!

चुनौती कुदरत के सख्त कानून को,

तुझे उसमें भी दिखती त्रुटि है!

होते धरा पर निरंतर अत्याचारों का,

प्रकृति अपना बदला लेने लौटी है!

ऊपर भी होता एक सख्त फैसला,

जब भी कुदरत हमसें रूठी है!

प्रकृति का निर्णय सबसे अकेला,

मौन दंड मजबूत पड़ती लाठी है!

प्राकृतिक आपदा,बाढ़ अकाल,

कोरोना कहर ,बीमारी मुफ्त में बांटी है!

फिर से प्रकृति मानव पर रुष्ट हुई ,

अब बदला लेने को लौटी है!इस वैश्विक महामारी से सबक लेना होगा,

नये हम वृक्ष लगाए जो लकड़ी हमने काटी है!


कवयित्री-:शशिलता पाण्डेय , बलिया (उत्तर प्रदेश)

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