तलाश - सर्वेश शर्मा । आज साहित्य
शीर्षक - तलाश
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धरा से लेकर नभ तक
तुझे तलाश किया तब तक
परे रही हर तलाशती
मेरी निगाह से जब तक
इधर से उधर तक
उधर से इधर तक
सुबह से सहर तक
हर पल से पहर तक
हर चमन स गुलजार तक
वीराने से बहार तक
रूठने वाले प्यार तक
मनाने की तकरार तक
दिल की रूसवाई तक
धड़कन की गहराई तक
आंखों की शोखियों में
सुर्ख लवों की खामोशियों में
हर जख्म में,हर मरहम में
हर सांस में, हर दम में
तलाशता रहा तुझे सदा
अश्कों के टूटते दर्पण में
न मिले हो तुम,मिलोगे कहां
तुझे ढूंढता फिरू मै यहां वहां
मेरी आंख थककर चूर है
तेरी तलाश को मजबूर है
अब सांस है थमने लगी
मेरी नब्ज भी रूकने लगी
तेरे दर्श दें,आ॰॰॰ दीदार दे
इक नजर ही मुझपे वार दे
आके मरते को कर दे जिदां
न आकर चाहे अब मार दे
तेरा मिलना ही मेरी जिद॔गी
न मिलना तेरा मेरी मौत है
तेरा प्यार है मेरी जान है
मेरी तुझसे ही पहचान है
*मेरी जान ही *मेरी जान*है
तेरे विन ये जिस्म भी शम्शान है
दिल कहता है,तूं तलाश कर
तुझपे अश्कों की वरसात कर
न मिले तूं तो भर आई पलके
पलकों से विरह का नीर छलके
उस नीर में धुंधली तस्वीर थी
तेरा हुस्न था,मेरी तकदीर थी
उसमें मैं पपीहा सा खो गया
उस चांदनी का ही हो गया
तस्वीर नहीं वो तुम ही थी
तुझे देख मदहोश हो गया
जो चली हवा,तेरा दामन उड़ा
मुझपे गिरा,तो सकून मिला
मुख फेर के जब मेरी जान
कुछ देर रूक कर चली गई
खुली रह गई, तब पलकें मेरी
दूर होती गई मुझसे आहट तेरी
पायल की झंकार के साथ जाती
मेरी जान,,मेरी जान भी निकल गई
तेरे कदमों की आहट में,जब
सन्नाटा टूटकर खो गया,तब
उन कदमों की आहट से आहत
सर्वेश सदा के लिये सो गया
स्वरचित - सर्वेश शर्मा बठिंडा पंजाब
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