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माँ पर रचना - कुदसिया जमीर । आज साहित्य


 

रचना शीर्षक- माँ

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माँ!

लिख रही हूँ तुम्हारी परिभाषा......

व्यक्त कर रही हूं तुम्हें शब्दों में...

बहुत कोशिश के बाद भी नहीं ढाल सकी तुम्हें अपने गीतों  में...

कितना भी लिखूँ ,लेकिन रह जाता है हर बार कुछ न कुछअधूरा..

सारा ब्रह्माण्ड समाया है तुम्हारे अस्तित्व में..

ख़ुद को मिटाकर, मुझे आकार देने वाली माँ..

मेरी हर पीड़ा पर 

हर चोट पर मेरे साथ रोने वाली...

मुझपर ख़ुशियां न्योछावर करने वाली...

मुझे बलाओं से बचाने वाली मेरी माँ!

अब कोई नहीं देता मुझे दुआएँ घर से निकलते वक़्त...

कोई नहीं रखता सर पर हाथ...

क्या -क्या लिखूँ ,

समेट रही हूँ शब्दों को

 नहीं व्यक्त कर पाऊँगी शब्दों में तुम्हें...,

तुम्हारे जाने की पीड़ा को...

कहाँ से लाऊँ वो शब्द,

जिनसे उकेर सकूँ तुम्हें पूर्ण रूप से...

जबकि सारी दुनिया समाई है तुम्हारे अस्तित्व में.....


लेखिका - क़ुदसिया ज़मीर, प्रयागराज

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