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कागजी फ़ूलो मे खुशबू का कोई झोंका नही - अतिया नूर । आज साहित्य

 

ग़ज़ल


कागज़ी फूलों में ख़ुशबू का कोई झोंका नहीं

ख़ौफ़ मुरझाने का भी इनको मगर होता नहीं।


लोग कहते हैं कोई भी आपके जैसा नहीं

क्या सिवा मेरे किसी को आपने परखा नहीं।


हर तरफ़ फैली हुई थीं रौशनी की चादरें

मैं ये कैसे मान लूँ तुमने मुझे देखा नहीं।


वक़्त थे हम ख़ुद न रुक पाए किसी के वास्ते

फिर शिकायत क्यूँ करें तुमने हमें रोका नहीं।


ज़िंदगी लफ़्ज़ों में ढलकर इक फ़साना हो गई

दर हक़ीक़त ये कि मैंने ख़्वाब कुछ देखा नहीं।


हम अगर चलते न "अतिया"यूँ सुलगती रेत पर

पांव में भी इस क़दर फिर आबला पड़ता नहीं।

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लेखिका :- अतिया नूर 

( गजल पत्थर के आँसू से ) 

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