अपना घर - शुभम पाण्डेय । आज साहित्य
[रचना शीर्षक- अपना घर]
एक कल्पनाओं का शहर , सुंदर जिसमें अपना घर
चहके इतराए बलखाए झूमे नाचे गाए हम ।
एक कल्पनाओं का शहर ,
सुंदर जिसमें अपना घर ...
हर घड़ी सोचूं , कैसे सवारू इसको ,,
कहां रंगों की बौछार , कहां हो फूलों की भरमार
कहां सूरज का सवेरा , कहां हो चांद का डेरा ।
एक कल्पनाओं का शहर ,
सुंदर जिसमें अपना घर ...
थोड़ी समझ हुई , तो लगाया एक तो द्वार
जिसमें दीपक की रोशनी और बल्बो का प्रकाश
जगमग–जगमग कर रहा , घर का हर एक भाग
एक कल्पनाओं का शहर ,
सुंदर जिसमें अपना घर ...
उस घर में एक नन्हीं गुड़िया , दो–दो जिसके भाई
दोनों संग करती हंसी ठिठोली , संग – संग करती पढ़ाई
इन तीनों के पूज्य पिताजी , फूले नहीं समाते
एक कल्पनाओं का शहर ,
सुंदर जिसमें अपना घर
चहके इतराए बलखाए , झूमे नाचे गाए हम ।
- शुभम पाण्डेय
परास्नातक छात्र (अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन)
जिला : बलिया (उत्तरप्रदेश)
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