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कोशिस मंजिल तक - जीतेन्द्र मीना, गुरदह । आज साहित्य

 

रचना शीर्षक - कोशिस मंजिल तक ( भाषण )


मुझे पता था 

रास्ते कठिन होंगे ,

आसान नही होगा 

वहा पहुँचना , लेकिन 

मै भी तो जिद्दी था ,

मुझे भी तो जिद 

पूरी करनी थी ,


मुझे पता था 

रास्ते घुमावदार होंगे ,

मंजिल को खोजना मुश्किल होगा , लेकिन 

खोजना तो हर हाल में था 

मुझे मंजिल को ,


हर उस गलत रास्ते पर पहुँचा 

जहाँ नही पहुँचना था , 

रास्ते से अनजान था ,

कोशिस करता ही रहा 

मंजिल तक पहुचने की , 

आखिर अंत मे मंजिल का 

रास्ता मिल ही गया ,


मेरी कोशिस सफल हुई क्योकिं मैने कोशिस से हार नही मानी ,


मंजिल खुद ही ढूँढनी पड़ती है 

मंजिल कभी चलकर नही आती 

बस मंजिल खोजने वालों की कमी है ।


- जीतेन्द्र मीना, गुरदह 

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