नज्म ( मै कहाँ हुँ ) - सर्वेश शर्मा | आज साहित्य
नज्म शीर्षक :- मैं कहां हूं
इक जहर था जो शहर में काम कर गया
खुद से मिले हुऐ भी,जमाना गुजर गया
हवा कुछ चली इस कद्र, जो मेरे शहर में
हर तरफ आंधियों का,कारवां पसर गया
टूटे घर,उड़ी छते, सारा शहर उजड़ गया
गया तूफान हर तरफ सन्नाटा बिखर गया
आज तक गलियों में,पूछता हूं मैं हरेक से
यारो मेरा भी एक घर था अब वो किधर गया
हर शाम क्षितिज की लालिमा में हूं मैं देखता
कि सूरज का खून पीकर सागर निखर गया
कसक दर्द बनके,बढ़ गई,जो सीने में तो गिरा
कहने लगे लोग खड़ा था जो,कैसे बिखर गया
खुली आंखें पथरा गई,ढूंढ के अपने ही घर को
पता चला धूल था, मरते ही धूल में मिल गया ।
लेखक - सर्वेश शर्मा
बठिंडा पंजाब
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