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रचना ( विद्रोह ) - मनुप्रताप सिंह | आज साहित्य

 

रचना शीर्षक  -  विद्रोह


लाने क्रांति के निमित्त,काव्य रचता हैं।

उफनती लहरों के विद्रोह में,भाव दिखता हैं।। 


चलो वेदी में,स्वयं आहूत करने।

जलों परवानों इस,तमस को हरने।

कवि भावों को तुम्हारे,उर में लिखता हैं।

उफनती लहरों के विद्रोह में,भाव दिखता हैं।।


डोला दो सिंहासन,सजे मुकुट फेंकों।

हिला दो नींव,उनको उखाड़ फेंकों।।

प्रलय के बाद भी तो,किंचित शेष बचता है।

उफनती लहरों के विद्रोह में,भाव दिखता हैं।।


पस्त कर बैरी को,लौट आओ तुम।

विजयश्री का मस्तक पर,लगाओं कुमकुम।।

ललकार सें तो कायर,बुज़दिल बचता हैं।

उफनती लहरों के विद्रोह में,भाव दिखता हैं।।


लेखक - मनु प्रताप सिंह चींचडौली,खेतड़ी

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