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चाहने लगा हू तुझे जब से - शायर बाबर | आज साहित्य


नज्म / गजल / शायरी - 

 

चाहने  लगा  हु  तुझे  जबसे  मैं

मेरे  पिछे  सारा  जमाना  परा  है


एक तुझको अपना बनाने के खातिर

दुशमनो को  अपना  बनाना  परा है


रो कर भी हम मुस्कुराये है महफिलो मे

हस  कर  गम  को  छूपना  परा  है


जो कभी काबिल ने थे मेरी दोस्ती के

तेरे लिए  उसको भी  निभाना परा है


तुमहे पाने  की एक  उम्मीद  पर हमें

अपना  क्या क्या  ना लूटाना  परा है


तुम्हारी यादो को भुलाने की खातिर

मूझे किसी और दिल लगाना परा है


- शायर बाबर

बहुआरा बुजुर्ग दरभंगा बिहार 

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