मौन हूँ
तो कमज़ोर मत समझना...
वाचाल हूँ
तो व्यभिचारी मत समझना...
सहती हूँ
तो पीड़ित मत समझना...
विरोधी हूँ
तो अपराधी मत समझना...
स्त्री हूँ
तो कठपुतली मत समझना...
इंसान हूँ
तो वस्तु मत समझना...
ज़िंदगी हूँ
तो क़ब्ज़ा मत समझना...
मृत्यु हूँ
तो क़ैदी मत समझना...
...~.डॉ. ऋचा ‘स्पष्ट’
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