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पीड़ा : राजकुमार जैन राजन


                       रचना शीर्षक : पीड़ा                      


तुम्हारे प्यार की आँच में
सीधे-सीधे ही
पूर्णता पा लेना चाहता था
पूनम के चाँद- सा

वक्त से आये फासले
नहीं भूले 
हथेलियों की गरमाहट
खामोशियों में ही
जिंदगी बसर होती रही हमारी

कभी-कभी 
जज्बात के ताने-बाने समेट कर
नर्म, रेशमी, मुलायम चाँद जैसे
सपने बुनता
तो कभी
समय की उधेड़बुन में
अपने लिए स्वयं ही चुनता दर्द
कुछ दर्द बहते नहीं
दिल से रिसते रहते हैं 
किरच- किरच

समझनी पड़ती है
उम्मीदें और परेशानियां भी
किसी असम्भव को
संभव करने की
किसी हमदम की ख्वाहिश
पूरी करने के लिए
टूटना, बिखरना भी 
अच्छा लगता है

तुम औरत थी
औरत ही बनी रही
मैं पुरुष था
पुरुष ही रहा
न तुमने कदम बढ़ाया
न मैंने रेखा पर की

देह का अभिमान
और मन का दरकना
प्रतीक्षा अन्तहीन
भोग रहा पीड़ा 
समय की!

लेखक : राजकुमार जैन राजन 

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