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शाश्वत प्रेम : राजकुमार जैन राजन । आज साहित्य

 

रचना शीर्षक : शाश्वत प्रेम

वक्त के भास्कर की 
उज्ज्वल किरणों को 
ओढ़कर दबे पांव 
खिड़की से आती 
स्वप्निल हवा में
तुम्हारे सारे प्रेम-पत्र 
फड़फड़ा रहे हैं
जो लिखे थे तुमने मुझे
प्रेम में 
उनमें सुनाई दे रही है
तुम्हारे हृदय की धड़कने
और दिल महक रहा है
गुलाब के फूलों की खुशबू-सा 

जी करता है 
ये सारे प्रेम-पत्र
फ्रेम में जड़ा कर 
दीवार पर टांग दूँ
ताकि आने वाली पीढ़ियाँ
जान सके कि
प्रेम क्या होता है?

जब सब कुछ  
छूट जाएगा
और साथ छोड़ रही होगी
स्मृतियां भी
तब फ्रेम किये ये प्रेम-पत्र
अपने अपनत्व से
अंगुली थामें साथ-साथ 
बतियाते चलेंगे 
मेरी आखिरी साँस तक

प्रेम की कोई अवधि 
नहीं होती
मेरे बाद इस शाश्वत प्रेम को 
यादों के गलियारे में 
अपनी अनुभूति की वर्णमाला से
खोजते रहेंगे
इस कलियुग के प्रेमी!

लेखक : राजकुमार जैन राजन

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