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एक पुरुष का मन फंसा होता है : मीनाक्षी पाठक


 एक पुरुष का मन फंसा

होता है एक स्त्री के 

चेहरे मैं

देखता है पल पल

बदलती उसकी भाव 

भंगिमाओं को

तलाशता है अपने लिए प्यार

उसकी आंखों मै

देखता है खुद को पूर्ण उसकी

गोल बिंदी मैं

महसूस करता है उसके

बदलते सपर्श को

उसकी हया से झुकी

गर्दन मैं 

और सम्पूर्ण समझता है 

खुद को जब उसको अपने 

आलिंगन में लेता है 


पर एक स्त्री उसका मन 

फंसा होता है सिर्फ उस 

पुरुष के दिल में

उसके सीने पर सर रखकर

ही वो खुद को सुरक्षित 

समझने लगती है

उसकी आंखों में देख लेती है

अपने लिए उठे प्यार को

उसी मैं तृप्त हो जाती है

उसके मुख से निकले दो बोल

पर अपना सर्वस्व निसार देती है


जब जब ये दोनो मिलते है

नवीन सृष्टि की रचना करते है 

बोते है फिर एक बीज विश्वास का

आधार का 

और लग जाते है उस बीज के

पोषण मैं 

कल ये बीज फिर कोई पुरुष 

कोई स्त्री बनेगा और 

रचेगा फिर एक संसार प्यार का

और एहसास का 

ताकि चलता रहे यही क्रम

बार बार 

और मिलते रहे यूं ही दोनो

ताकि बना सके एक नई दुनिया


~ मीनाक्षी पाठक 

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