दिल से हिंदुस्तान लिखूं - कवि जितेंद्र सन्यासी । आज साहित्य
रचना शीर्षक - दिल से हिन्दुस्तान लिखूं
इस मिट्टी की खुशबू को,मैं फिर से उनके नाम लिखूं..सुबह लिखूं या शाम लिखूं,मैं दिल से हिंदुस्तान लिखूं..मर्यादा का ज्ञान ज्योति, प्रभु ने जग को सिखलाया है..मुरली वाले कान्हा ने ,गोपी संग रास रचाया है..जिस धरती ने जना है सीता, उनको मैं प्रणाम लिखूं..सुबह लिखूं या शाम लिखूं, मैं दिल से हिंदुस्तान लिखूं..जहां कौटिल्य ने कूटनीति से,भारत का मान बढ़ाया है ..और चन्द्रगुप्त बल से अपने,शत्रु का शान घटाया है..जग में ध्वज फहराने वाले, मैं तो अशोक महान् लिखूं ..सुबह लिखूं या शाम लिखूं, मैं दिल से हिंदुस्तान लिखूं..पृथवीराज मतवाला है जो,दुश्मन भी माफ किया है..चेतक वाले राणा ने,शत्रु ही काट दिया है..फिर कैसे दिल से अपने , मैं अकबर को महान लिखूं..सुबह लिखूं या शाम लिखूं, मैं दिल से हिंदुस्तान लिखूं..जिसने अपना जीवन सारा, भारत मां को दे डाला..फांसी के तख्ते पर झूले, आंख को सावन कर डाला..उन बेटों की कुर्बानी को, शब्दों से सम्मान लिखूं..सुबह लिखूं या शाम लिखूं, मैं दिल से हिंदुस्तान लिखूं..जो भारत की रक्षा में, सरहद पर प्राण लुटाते है..जननी मां से तोड़ कर नाता, भारत की लाज बचाते है..उन बेटों के सम्मानों को, चारो तीर्थ धाम लिखूं..सुबह लिखूं या शाम लिखूं, मैं दिल से हिंदुस्तान लिखूं.- कवि जितेंद्र संन्यासी ,मधुबनी (बिहार)
Post a Comment