जातें कहा है - सर्वेश शर्मा
शीर्षक〰️जाते कहां है
कोई यहां है, तो कोई वहां है. ..
किसी ने आंख खोली है..
इस जहां में अभी अभी...
कोई अभी अभी इस
जहां से रूख्सत हो जाता है ..
कोई सारा दिन छाया रहा
सोशल मीडीया पर,
दो वातें फिजूल की करके
किसी की जान जाने का
चर्चा भी नहीं होता है....
कहीं आग की लपटों
से आंखें चुंधिया रही है
कहीं फैला धुआं आंखों से
पानी वहाता है...
कहीं नारी सम्मान में
हो रहें हैं आयोजन,तो
कहीं मासूम कलियों का
जवरजनाह हो जाता है...
कहीं ढोंगी वावा के आते
ही,भड़क जाते है दंगें,तो
कहीं पे सूली पर कोई मसीहा
ही लटका दिया जाता है...
कहीं वहुत फलते है वेआवरू
करने वाले, आवरूओं को
कहीं अन्नदाता ही सड़कों पे
वेरहमी से कुचल जाता है...
कहीं तरसते हैं रोटी के
चंद टुकड़ों को इंसान
कहीं कुत्तों के लिये डिब्बों में
गोश्त भरा जाता है....
कहीं लहू बिखरता है वत्तन
परस्तों का कुर्वान होके, अपनी
जान लुटाता है... तो कहीं
कोई सौदागर विककर,
सड़कों पर लाशें बिखराता है...
ये सारा जहां है, जहां है
वहां है, इसमें न कुछ भी
तेरा यहां है...
तेरे वड़े यहां रहे चार दिन ही
तुझे सिर्फ च॔द रोज ही
रहना यहां है...
ये न पता लगा आज तक,
किसी कोकहां गये सभी वो
छोड़ इस जहां को ,वो रहते कहां है,
क्या उनका जहां है..
सर्वेश* क्या, समझ ही सका
नहीं कोई, कहां गये हैं सब
तूने जाना कहां है,
कहां वो जहां,तूने जाना जहां है
सभी ने ही जाना जहां है...
स्वरचित:- सर्वेश शर्मा बठिंडा पंजाब
अतुलनीय प्रस्तुति बाबा जी
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