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कहानी ह्रदय परिवर्तन- अंकुर सिंह । आज साहित्य


 

कहानी - हृदय परिवर्तन


         "अच्छा माँ, मैं चलता हूं ऑफिस को लेट हो रहा है। शाम को थोड़ा लेट आऊंगा आप और पापा टाइम से डिनर कर लेना।" अंकित ने ऑफिस का बैग हाथ में पकड़ते हुए कहा।

         "ठीक है बेटा, घर आते टाइम कुछ सामान भी लेते आना। समान के लिस्ट की पर्ची तुम्हारे बैग में रख दी हूं।"

 "ओके माँ, बाय! लव यू !

         "अब आप भी चाय और नाश्ता कर लीजिये।" विमला ने चाय नाश्ता टेबल पर रखते हुए कहा।

      "चुनाव का समय आ गया और सभी टीवी चैनल बस जाति-धर्म के आधार पर वोटो की संख्या बताने में लगे पड़े है। जबकि हमें जाति धर्म से ऊपर उठकर योग्य उम्मीदवार का चयन करना चाहिए देश के विकास के लिए।" चाय के चुस्की के साथ टीवी चैनल बदलते हुए राजेश बड़बड़ा रहा था। 

 "आप भी सुबह - सुबह कौन सी बात लेकर चालू हो गए, ऐसा लगता है पूरे देश की फिक्र आपको ही है और सबसे बड़े नेता आप ही हो!"

"नेता नहीं, एक जिम्मेदार नागरिक जरूर हूँ। अच्छा, छोड़ो इन बातों को, तुम्हे नाश्ता नहीं करना क्या? जो ऐसे बैठी हो।"

 "नहीं, आज मेरा मन नहीं है नाश्ते का करने का।"

"क्या हुआ मन को, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न ?"

"हां, तबियत तो ठीक है, बस थोड़ी सी चिंता खाए जा रही है।"

 "किस बात की चिंता, विमला !" चाय का प्याला रखते हुए राजेश ने कहा ।

"कुछ नहीं, बस थोड़ा अंकित को लेकर"

"क्यों, अब क्या किया तुम्हारे लाडले ने ?" राजेश ने भौंहें तानते हुए पूछा।

"कुछ नहीं किया उसने। आप बस कमियां ढूंढो उसमें।"

"कुछ नहीं किया तो फिर किस बात की चिंता खाए जा रही है तुम्हे?"

       "हर माँ चाहती है कि उसकी संतान हमेशा खुशहाल रहें। अंकित की उम्र तीस हो गई है। इस उम्र में तो हमारे बच्चे स्कूल जाने लगे थे । और अभी तक अंकित की शादी भी नहीं..., इसी बात की चिंता खाये जा रही मुझे, आखिर, एक मां जो हूं मैं।" विमला ने लंबी सांस लेते हुए अपनी बात खत्म की।

             "तुम्हारे लाडले को कोई लड़की पसंद आए तब तो बात आगे बने। न जाने किस हुस्न परी के ख्वाब में है वह ? पिछले हफ्ते ही गाजीपुर वाले मामा ने किसी लड़की की फोटो बायोडाटा भेजा था। पर उसने तो साफ मना कर दिया न जाने क्या समझता है खुद को।" राजेश ने ऊंची आवाज में अपनी बात को खत्म किया।

             "जानती हूँ, एक पत्नी के नाते आपको भी और एक माँ के नाते अंकित को भी। आप को भी पता है कि वह रिया को पसंद करता है।"

"कौन रिया ?" राजेश ने टीवी की आवाज कम करते हुए पूछा ।

            "अरे वही रिया जो अपने तीसरी गली में रहती है। अंकित के साथ पढ़ती थी ऊपर से रिया भी अंकित को पसंद करती है। दोनों प्यार करते है एक दूसरे से।" विमला ने कहा।

"कहीं तुम, गुप्ता जी के बेटी रिया की बात तो नहीं कर रहीं हो।"

         "हां, मैं गुप्ता भाई साहब की छोटी बेटी रिया की बात कर रहीं हूँ, जिसने पिछले साल ही अपनी एमफिल की पढ़ाई खत्म की और सुंदरता के साथ-साथ समझदारी भी है उसमे। एक लाइन में कहें तो रूपवान के साथ-साथ गुणवान भी है रिया।" विमला ने कहा।

           "विमला, तुम्हे पता है, क्या कह रही हो तुम ? वह हमारे बिरादरी में नहीं आती है। क्या कहेंगे समाज में चार लोग हमें, इसकी जरा भी समझ है तुम में ?" राजेश ने कहा।

            "क्या कहेंगे का क्या मतलब ? थोड़ी देर पहले आप एक जिम्मेदार नागरिक के नाते कह रहे थे कि देश के विकास के लिए जाति-धर्म से ऊपर उठकर योग्य उम्मीदवार का चयन करना चाहिए। ठीक उसी तरह हमें लोगों की परवाह छोड़ एक जिम्मेदार माता-पिता होने के नाते अंकित की खुशी के लिए उसकी पसंद रिया का चयन अपनी बहू के रूप में कर लेना चाहिए। जो शिक्षित होने के साथ साथ रूपवान और गुणवान भी है।" विमला अपनी बात खत्म करते हुए चाय का कप लेकर किचन की ओर चल पड़ी।

          थोड़ी देर बाद राजेश भी किचेन में पहुंचता है और विमला के कंधे पर हाथ रखते हुए कहता है कि " तुम्हारी बातों ने तो आज मेरे हृदय को परिवर्तित कर दिया। जब ईश्वर ने हम सभी को एक ही रंग का खून दिया तो फिर हम ईश्वर के बनाएं अनमोल इंसान को अलग-अलग जाति-धर्मों का रंग क्यों दें ? कल ही मैं जाति-धर्म की परवाह किए बिना  अंकित और रिया के रिश्ते की बात गुप्ता जी से करूंगा।"


लेखक - अंकुर सिंह

हरदासीपुर, चंदवक,

जौनपुर, उत्तर प्रदेश- 222129

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