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वृक्ष का पैगाम इन्सान के नाम - सर्वेश शर्मा | Aaj Sahitya


 

नोट :- लेखन मे अशुद्धि के लिये जिम्मेदार लेखक स्वयं है आज साहित्य इसकी जिम्मेदारी नही लेता है ।

यह रचना सर्वेश शर्मा द्वारा लिखी गई है 


रचना - वृक्ष का पैगाम इंसान के नाम


कभी  ननिहाल  गांव  में, जब  मां  के साथ आते  थे

मुझ  कड़वी,  नीम   की,  मीठी  निमौलिया  खाते  थे

ना  फौड़ा  ना  फुन्सी, कभी  हुई  थी, मेरे  बच्चो तुम्हे

डाल  कर  मुझपे  रस्सा  सब  तुमको  झूले  झुलाते थे              

 मेरी  हरी  हरी  पत्तियों   को, कुन्डे  में  रगड़ा  जाना 

डालकर  नारियल  तेल,  जख्मों का  "मल्हम "  बनाना

हर  गहरे  सेे  गहरे  जख्म  पर,  नानी   मां  ने  लगाना

सुबह  तक  जख्म  का, मल्हम  लगकर ठीक हो जाना                

जब  से  इस   गांव  से,  तुम   सब   शहर  में आ  गये

तब  मेरी दातुन भूलकर,  तुम  सब  पर  पेस्ट छा गये

अखरौट  तोड़ने  वाले  दांतों  को, चाकलेट  खा  गया

कभी छुपते थे घर हममें,घरों में सब ,हमको  छुपा गये          

मुझे  काटकर ऐ इंसान तूं , कहां से कहां जाने  लगा

छीनकर मेरी हरियाली,गगनचुम्बी ईमारतें वनाने लगा

जानता है,मेरे बगैर तुझे,सांस मिलना भी मुश्किल होगा

मेरा बजूद भी ,अपनी कोठी के ,गमलों मे ,सजाने लगा             

 तेरी ज्यादतियों से हम ,अपने सांसों की ,न तार तोड़  दें

हम मासूमों  पर  कुल्हाड़ी से करना ,अपना वार छोड़ दे

हे इंसाँ, तुमने सीखा है,जिस जहाँ में औरो से दगा करना

उसी जहाँ में सीखा है हमने,सदा,औरो का भला करना            

तूं अगर  आज पीढ़ी दर पीढ़ी हमें वचाने का वचन देगा

मैं  तुझे और तेरे बंशजों  को छाया,और  ईंधन   दूगा

सावन में झूला मुझपे,सदा झूलेगी तेरी हर संतान

मुझ में है तेरी जान।  ,और।  तुझमें है।  मेरी जान

वृक्ष और सर्वेश की इच्छा का रखना तुम सदा मान

          - सर्वेश शर्मा 

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