जिन्दगी सपना है - सर्वेश शर्मा | Aaj Sahitya
कविता ~ "जिदंगी सपना है"
जीवन क्या है, अपना तो
आज बजूद कल सपना है
पलक खुली तो जिन्दगी है
पलक बंद तो माटी में दफना है।
मालूम है सभी को जाना है
इक दिन जाकर जहांन से
लोट कर वापस नहीं आना है
फिर भी समझते है क्यों सभी
अपना तो यहीं ठिकाना है।
जिस जिन्दगी को गले
लगाया हमने इक उम्र हरपल
उस जिदंगी को आखिर इक दिन
मौत के संग ही तो जाना है
कैसे हैं गिले ~ शिकवे और
रूसवाईयाँ संग दोस्तो तुमसे
आज हमने जाना है तो कल
तुमको भी चले जाना है
लाख जगह बनाने की कोशिश की
सबके दिलों में मैने,पता है मुझे
इक दिन आंख मूंदते ही सभी ने
मुझको जला कर घर आना है
यहीं अरज है इक दूजे को
जीते जी गले लगा लो यारो
इक दिन तो जलाके चले आयेंगें
सभी अपने अपने घर को
जीते जी तो प्यार लुटा दो यारों...
थोड़ा सा मुझपे अपना
प्यार लुटा दो यारो
याद रखना इक दिन जब
मेरे मरने पे तुम आंसू बहाओगे
आंख भी मीठे मीठे से सपने
सजाती है सबकी देखना लव पे
रखकर हमें,हम नमकीन खारे से थे
आंसू वनके निकल जायेगें
फिर कभी दोस्तों की महफिल
में लाख बुलाने पे भी लौट के
न आयेगें..लाख बुलाने पे भी
हम कभी लोट के न आयेगें।
लेखक :- सर्वेश शर्मा, बठिंडा (पंजाब)
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