फिर क्यों - अमरेंद्र सहाय अमर | Aaj Sahitya
रचना शीर्षक - फिर क्यों
हर ह्रदय में है थोड़ा थोड़ा प्रेम
हर ह्रदय प्रेम करता है
इक दूसरे ह्रदय से
आशा सब रखते है कि
हो मिलन अपनी प्रेमिका से
चाहे हो नए या पुराने दौर का प्रेम ।
पर समझ मुझे नही आता
जब हर ह्रदय में महकता है इक पुष्प
ओर है चाहता तितली, मधुकर
तो क्यो चलती है गोली
क्यो बजती हैं लाठिया
क्यो दुश्मन बनते हैं फिर लोग
क्यो देते गाली गिरती लाशें
इक जोड़े के मिलने पर ।।
क्या यह राधा कृष्ण का संसार
है नही बना प्रेम के खातिर
गर है नही बना तो फिर
क्यो महकाए यह सुन्दर पुष्प
जिसपर मरते तितली भवरे
क्यो चमकाए उजले पर्वत
जिन पर टुकड़े बर्फ के ठहरे
काहे मीरा को प्रेम दिया
काहे शबरी से बेर लिया
काहे बहाए सीता बियोग में द्रगजल
जब नही है सुरक्षित
हर प्रेम का कल
- : अमरेन्द्र सहाय अमर , सीतापुर उत्तर प्रदेश
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