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अपनापन अपनों का - सर्वेश शर्मा | Aaj Sahitya


 सर्वेश शर्मा वठिंडा द्वारा रचित कविता

रचना शीर्षक- अपनापन अपनों का


गर अपने न छलते तो हरते न हम

विना वजह वेमौत कभी मरते न हम

                

है कौन जो हरा सके पराक्रम हमारा

सिर्फ अपनों के फरेबों से डरते है हम

               

मेरी ताकत,मेरा हौंसला,अपने ही थे

उन अपनों के भरोसे ही लड़ते रहे हम

               

उतने ही पीठ में,धंसती रही किरचे मेरी

जितने हीअपनों के प्यार से गले मिले हम

                   

ये तो अपने अपने, मुकद्दर की वात है,जो

अपने ही भाईयों को मानते,अपना हमदम

              

इक दूजे का भरते है,भाई उम्र भर, 'दम'

चाहे राम सा भाई हो चाहे भरत लक्ष्मण

                  

अपने,अपनों की भी जान ले लेते है 

चाहे हो,दुर्योध्न,भीष्म,भीम,अर्जुन

                 

इक बहु के लिये, टकरा गये थे,दो

वनवासी,वनमानुषों के साथ अपनी

आन वान,अपनी मान मर्यादा के लिये

                  

इक,त्रिलोक विजेता,लंकेश रावण से

कर दिया सोने की लंका का दहन

                

इक पांचाली वहु का हुआ था भरी 

सभा में,सभी बड़े बर्जुगों के सामने

               

अपने रक्षक वलशाली,पांच पतियों

केे सामने,अपनों में,अपनो से ही 

अपनी ही इज्जत,का हुआ चीर हरण

            

अपने अगर अपने होते तो,ये,युद्ध,ये

महाभारत,न होता द्रोपदी का चीरहरण

           

"सर्वेश" के लिखे चंद अपने पन पर

अल्फाजों का करो, जरा गौर से चिंतन

              

अपनों ने अगर अपनों का अपने ही

दिल से,सदा भरा होता दम, हरदम

          

महाभारत की जगह इतिहास में ही

लिखी होती व्यास श्रृषि ने रामायण


    रचनाकार -  सर्वेश शर्मा

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