कवि रावण जला रहा - कवि विशाल श्रीवास्तव | Aaj Sahitya
रचना शीर्षक- कवि रावण जला रहा.
कैसे खुश हों लोग वो रावण के दहन पर,
जिनका धंधा आजकल रावण चला रहा.
रावण की तरफदारी में कुछ लोग घूमते,
पैर नहीं है उनके पर रावण चला रहा.
रावण को जला पाएंगे ये ज्ञात नहीं है,
पर मेरे मुल्क को ये रावण जला रहा.
हंस रहा रावण देख कवि की दशा,
कवि शब्दों में अन्तर्मन का रावण जला रहा.
~ कवि विशाल श्रीवास्तव.
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