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शहर का मिजाज - प्रान्जली काव्य ( ममता यादव ) | Aaj Sahitya

 


कविता का शीर्षक -

शहर का मिजाज

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हो न पाया कभी समझौता

बीते कल से आज का

इसिलिये तो खुला है पन्ना

अतीत के हर राज का


अनुभूतियों के मौन जुलूस मे

मै खुद शामिल नही था

मन में डर बना रहता है

खुद अपनी ही आवाज का


अर्थो में और अर्थ ढूंढता

उलझ गया अनजाने में

जिसके सारे तार उलझ गए

क्या होगा उस साज का


टकरा कर लौटी आवाजें भी

उन मजबूत दिवारों से

अंधियारे पर असर हुआ कब

चीख भरी आवाज का


शहर पराया राहें अनजानी

चलते चलते दर दर भटके

रुख हमें तो समझ ना आया

इस शहर के मिजाज का


जीवन का पहला पन्ना जन्म

मौत अंतिम पृष्ठ किताब का

बीच का सारा का सारा पन्ना

तो है केवल इम्तिहान का

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लेखिका  - प्रान्जलि काव्य (ममता यादव)

स्वरचित मौलिक वसर्वाधिकार सुरक्षित

भोपाल मध्यप्रदेश

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