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कुछ भूले बिसरे सपनों को - रवींद्र कुमार | Aaj Sahitya

यह रचना लेखक रवींद्र कुमार जायसवाल द्वारा लिखी गई है जो की पूर्व वरिष्ठ संचालन अधिकार म प्र , विद्युत मंडल कोरबा पश्चिम छः ग पद पर कार्यरत हुए है उम्मीद है आपको इनका लेखन पसंद आयेगा ।


नोट:- यह रचना लेखक द्वारा स्वयं ही भेजी गई है इसमें अशुद्धि की पूरी तरह जिम्मेदारी लेखक की है ।

रचना - कुछ भूले बिसरे सपनों को.......

व्यथित हृदय को समझने

यादों को आमंत्रित कर दूं कुछ भूले बिसरे सपनों को

मन दर्पण से विस्मृत कर दूं।।

रवि की बाल सुलभ मुस्काने

अंतस की पीड़ा रहतीं थीं

भरी दुपहरी और तपन में

मन में शीतलता भरतीं थीं।

जाड़े छोड़ रहे हैं ठिठुरन

गर्मी की ही दावत कर दूं।।

कुछ भूले बिसरे सपनों....

अभावों में जीने की अब

आदत छूट नहीं पाती है

अविश्वास से लड़ने को

साहस जुटा नहीं पाती है।

ऐसी जो पहचान बनी है

उसकी थोड़ी दुरगत कर दूं।।

कुछ भूले बिसरे सपनों....

चाह जगेगी शुष्क हृदय में

तो जड़ता से मुक्ति मिलेगी

दीख रहे जो पथ विस्तारित

चलने की क्या शक्ति मिलेगी।

शेष बचा है स्वाभिमान अब

आगत को वो अर्पित कर दूं।।

कुछ भूले बिसरे सपनों....

झुलस रहा है सत्य सार्थक

मौन देखता जन जन पाया

शापित होता देख रहा हूं

मानवता का हर एक साया।

संदेहों की नींव खड़ी है

उसको धूल धूसरित कर दूं।।

कुछ भूले बिसरे सपनों....

              ........ 

               -   रवीन्द्र कुमार , पुणे महाराष्ट्र

        

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