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चुपचाप : राजकुमार जैन राजन । आज साहित्य

 

रचना शीर्षक:  चुपचाप 

उस गुलाबी शाम में
पुरवाई
उन्मुक्त -सी
खुशबूदार झोंकों के संग
बह रही थी
और हम….
बुन रहे थे सपने
चुपचाप

कहीं 
क्षितिज के आस-पास 
आँखों में
पल रहे थे ख्वाब

तुम 
एलबम की तस्वीरों से
अपनी यादों को
ताज़ा कर रही थी
अपनी आँखों में उगे
कुसुम के सहारे
और मैं पिघल रहा था
तुम्हारी कोमल हथेलियों में
मोम की तरह

लहलहा रही है
इन आँखों के भीतर
एक उन्मुक्त झील
जिसमें
मेरी उम्र जमकर
बर्फ हो गई है!

लेखक : राजकुमार जैन राजन 

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