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देह गंध : राजकुमार जैन राजन । आज साहित्य

 

रचना शीर्षक: देह गन्ध

मन की सूनी देहरी पर
मिलों फैले सन्नाटे में
तुम्हारे होने की आहट
देती है मुझे
कितना सुकून
जैसे हो ठंडक भरी 
टेसू की आग

आसमान भी
पैरों में आ जाता 
थोड़े बादलों के साथ
आसक्ति के उन क्षणों को
जैसे त्यौहार करने

जितनी बार 
मैं तुमसे मिलता हूँ
यूं लगता है जैसे
तुम स्वयं ही 
मेरी तलाश में होती हो

तुम्हारी देह से उठती गन्ध
लिख रही इतिहास
मुक्ति के क्षण का
मेरी हर सांस, हर दृष्टि
महसूसना चाहती है 
उस सम्मोहन को
जिसमें प्यार का बिरवा
जवान हुआ था

जलते हुए खव्वाबों की
तपिश मैंने 
अक्सर महसूस की
जो दहक उठी थी 
हमारे प्रथम मिलन पर
जब मन पर लगे 
नियंत्रण हटे
उमड़ा था आवेग
बिना रुके शबनम की
बूंदों जैसा
पिघलते रहे हम
कतरा - कतरा !

लेखक : राजकुमार जैन राजन

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