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अनुष्ठान : राजकुमार जैन राजन। आज साहित्य


 रचना शीर्षक : अनुष्ठान


जब से लौट गई हो तुम 
मेरे पास से 
मेरी संवेदनाएं बौनी ही नहीं 
अस्तित्वहीन हो गई है 
बहुत कठिन है 
सत्य की तलाश 
जुड़ गए हैं तार कहीं से  
अपनी संवेदनाओं के  
शायद  इसी लिये 
महसूस करता हूँ  
तुम्हारे प्यार की ख़ुशबू 
जो मेरी आत्मा तक फैल गई है  

जब-जब बैठी थी तुम 
पास मेरे 
अहसास हुआ मुझे 
एक स्फुरण 
अपनी सुप्त चेतना में 
कुछ नये सृजन के लिए 
जीवन के यथार्थ से 
सहमत होकर
बहती रही 
अपनी लय में नदी-सी तुम  
सुनाई देता था जीवन-राग 
इसी लिए ही 
महसूस होता है मुझे
मिल गई थी तुम मेरी साँसों में 
ख़ुशबू की तरह  
गहरे और गम्भीर 

जब से लौट गई हो तुम 
मेरे पास से 
बहुत उद्धिग्न है मेरा मन 
कचोटने लगी है अनेक पीड़ाएं 
समय की दहलीज़ पर 
मैं लौट आऊंगा तुम तक 
तुम और मैं  … मिलेंगे वहाँ 
जहाँ  मैं और तुम नहीं होंगे 
सिर्फ हम होंगे 
आत्म शांति का अनुष्ठान 
संपन्न होगा फिर से !

लेखक : राजकुमार जैन राजन 

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