चीरहरण : चेतना सोलंकी । आज साहित्य
रचना शीर्षक : चीरहरण
आज फिर हो रहा है चीरहरण
हैं मौन सभी,हैं मौन सभी
भीड़ वहां भी होगी खूब उसी तरह जैसे कि धृतराष्ट्र की थी सभा सजी
हैं मौन सभी, हैं मौन सभी दुशासन बनने वाले क्यूं तुझे फिर नहीं बिल्कुल भी शर्म रही
हैं मौन सभी ,हैं मौन सभी
कभी दामिनी कभी आसिफा कभी गुड़िया
आज चीरहरण क्यों गांधारी बन बांध पट्टी आंखों पर
है मौन खड़ी, है मौन खड़ी
क्या हमको ही बनना होगा रानी झांसी
लेने होंगे खुद निर्णय सभी
है मौन सभी ,है मौन सभी
त्राहि, त्राहि ,त्राहि ,त्राहि, है मौन सभी, है मौन सभी
लेखिका : चेतना सोलंकी
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