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मौहम्मद इमरान की रचनाएँ यहाँ पढ़े । आज साहित्य



बस मोहब्बत है आपसे
क्यों,है क्या,है कैसे हैं,
ये नहीं जानते
बस ये जान लो 
की मोहब्बत है आप से 

तुम हो,या न हो
फिर भी तुम ही हो 
तुम हो तो मोहब्बत है
तुम ना हो तो मोहब्बत है
क्यों है,क्या है, कैसे है
ये नहीं जानते 
बस ये जान लो 
की मोहब्बत है आप से 

आप बात भी आपने मर्जी से करते हैं
जब मर्जी हुआ करते हैं 
जब मर्जी हुआ नहीं करते हैं 
हम भी आप की मर्जी का इंतजार करते हैं 
क्यों करते हैं,किस लिए करते हैं
ये नही जानते 
बस ये जान लो 
की मोहब्बत है आप से 

अब चेहरा छुपाने का क्या फायदा
आप की आंखे भी बोलती है
जो कहना था वो कह दिया
क्या कहा,किस से कहा, क्यों कहा 
ये नही जानते 
बस ये जान लो
की मोहब्बत है आप से 

क्यों है क्या है कैसे है 
ये नही जानते 
बस ये जान लो 
की मोहब्बत है आप से 

: मोहम्मद इमरान
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रुक जाओ सांध्य हो रही है, मैं तन्हा हूं
सब अपनी अपनी दुनिया में 
लौट रही है 
नारंगी छटाएं बदल 
रही कालिमा में,
रुक जाओ संध्या हो रही है, मैं तन्हा हूं

रात रानी महक उठी कालिमा में
तन्हा में खिलखिलाती 
पुष्प मुरझा रही है कालिमा में
जुगनू जग मागा उठा कालिमा में
रुक जाओ सांध्य हो रही है, मैं तन्हा हूं

जा रहें है सभी मुसाफिर
अपनी अपनी दुनिया में,
लौट रहें है 
सभी पक्षी आपने घरों में
विरान पसरा आकाश 
बदल रही है कालिमा में 
रुक जाओ संध्या हो रही है, मैं तन्हा हूं
इस कालिमा में, 

  : मोहम्मद इमरान
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तुम्हें लौटकर आना चाहिए था
तुम्हें तब तक आना चाहिए था 
जब तक मैं तुम से प्रेम न कर बैठता
उसी तरह जिस तरह प्रेम में परा इंसान
आते रहता है आपने प्रेमी के गली मैं
जब तक वो प्रेमी को पा ना ले 

  : मोहम्मद इमरान
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सुनो यार,
मैं प्रेम में आधा हूँ मुझे प्रेम की परिभाषा नही मालूम,
मुझे प्रेम में आधा चांद दिखता है और उसकी कत्थई सी आंखें दिखती है
उसकी मुस्कान शायद आधे इंद्रधनुष  को रंग देती है और उसे पूरा कर देती है 
और उसका चेहरा सूकून का पर्यायवाची है ...
मुझे नहीं पता
भावनाओं की सीमा, किंतु
उसका प्रेम पूरा है
मेरी समस्त भावनाओं का नियंत्रक है

 : मोहम्मद इमरान
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मैं कहीं जाना चाहता हूं ,
बनारस जैसे शहर में,
तुम्हें ढूंढना चाहता हूं ।
मुंबई जैसे शहर में,
तुम्हें सोचना चाहता हूं,
हर जगह ,हर पल, हर दिन
फिर एक कविता लिखना 
चाहता हूं। 
तुम्हें देखे बिना ,
तुम्हें छुए बिना ,
तुम्हें महसूस किए बिना
फिर उस कविता को बार- बार 
सुनना चाहता हूं!
तुम्हारी लफ्जों से,
फिर उसे मैं बनारस की
गलियों में छोर दूंगा!
ताकि जब जब उपन्यासों में बनारस की गलियों की चर्चा हो तो लोग तुम्हारी आवाजों को महसूस करें।
हमेशा हमेशा के लिए।

: मोहम्मद इमरान

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