क्यों नहीं आती तुम - विनोद ध्रब्याल राही
रचना शीर्षक :
क्यों नहीं आती तुम
मिलते थे रोज जहाँ
आँखों से आँख बचाकर
दिल में उमंगें
ढेरों सपने सजाकर
वीराना पसरा हैं
मिलन की उस ठाँव में
क्यों नहीं आती तुम
अब पीपल की छाँव में।
धरती नाचती संग नहीं
गगन नहीं गाता गीत
नदिया बहती गुमसुम
फिज़ाओं में नहीं संगीत
जम गई है रवानगी
नहीं घूमचक्र अब पाँव में
क्यों नहीं आती तुम
अब पीपल की छाँव में।
क्षितिज की लाली
अब पुकारती नहीं
प्राणवायु निष्प्राण सी
साँसें महकाती नहीं
दिन में नहीं निकलता
अब चाँद हमारे गाँव में
क्यों नहीं आती तुम
अब पीपल की छाँव में।
लेखक - विनोद ध्रब्याल राही
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