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रचनाकार व लेखक सर्वेश शर्मा की रचनाएँ व नज्म

 

रचना शीर्षक - रिश्ते प्यार के


 ढूंढ ले तेरी नजर

          तो मिल ही जायेगें

 देखो अपनी ही आंखों में

हम वहीं नजर जायेगें

             

   ये दिल में विठाने से

   दिल के वनते है रिश्ते

पलकों पे विठाने से

    वनते हैं प्यार के रिश्ते

        

पाक हो  मधुर हो

  प्यार हो, बरकरार हो

इल्तजा न हो कोई

  न कपट हो तकरार हो

          

निभते है मरते दम तक

  ये प्यार के रिश्ते 

खुशियां मनाते हो संग 

    तो रहो गम भी वांटते

 

गम के तलवगार हो उसके ही

सदा, संग जिसके दोस्ती हो

दोस्तों में दिल से लगने वाली

कभी कोई दिल्लगी ही न हो

         

दोस्तों के वीच न कभी

 धोखे का आसार हो

 रिश्ता है वहीं दोस्ती का

जो बुरे वक्त में,जांनिसार हो

     

 रिश्ते और दोस्ती का नींव

का इतना मजवूत आधार हो

  

वस प्यार हो सिर्फ रिश्ते में

और दोस्ती  मे ही प्यार हो


दोस्ती निभानी हो तो सदा 

    दोस्तों में निभाओ ऐसी

राम सुग्रीव जैसी हो

  हो कृष्ण सुदामा जैसी


दोस्ती और रिश्ता ऐसा वने

जग को आईना दिखला दो

सर्वेश की इस सोच पर

अपने प्यार का रंग चढ़ा दो


स्वरचित:- सर्वेश शर्मा बठिंडा पंजाब


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नज्म शीर्षक - मजाक थोड़ी है


हम मर गये तुझपे कसम से

क्या ये,वात थोड़ी है


जहन में वसे हो सिर्फ तुम 

सिर्फ तुम,मगर 

तुझे अहसास थोड़ी है


ख्यालातों में,ख्यालों में

जबाबों में सवालों में

सिर्फ तुम हो हम है 

 अपने दरम्यान कहा सुनी की

कोई वात थोड़ी है


लोग कहते है हम दो जिस्म है

मगर इक  जान है,अब वता भी

दो सबको ये  इक तरफा 

हालात थोड़ी है


तेरे सवालों में  मिल गये

जवाब तेरे दिल से मुझे

तुम मागों मुझसे अब जवाब

अब  मेरे पास तेरे लिये

कोई सवालात थोड़ी है


हम तुम्हे जब करते थे लाइक

तुम करते थे कमेंट,आज हम

तुम पे करते है कमेंट,तुम्हारा

दिल से लाइक करना हमें

ये मजाक थोड़ी है।


-सर्वेश शर्मा

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