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मुकद्दर अपना अपना - सर्वेश शर्मा | आज साहित्य

 


रचना शीर्षक - मुकद्दर अपना अपना

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 कहीं कोई भूख से बिलखता हुआ

पेट रोटी को तरस जाता है । 


तो कहीं कोई कार मे कुत्ते को 

भी मंहगें बिस्कुट खिलाता है ।

                   

कोई मंदिर के आंगन में वैठा

हुआ पैसे पैसे को मोहताज है।


तो कहीं कोई प्रभु के दरबार में 

भी V.I.P बन के आता है !

                   

कहीं किसी की लाश को भी 

कफन नही मिलता है  !


तो कहीं कोई फूलों की भरी

गाड़ी में ले जाया जाता है ।

                 

कहीं कोई सड़क पर बिखरा है 

लावारिस खून से लहूलुहान होकर 


किसी के जरा सा छींकने पर

डाक्टरों का काफिला आता है 

             

किसी की तो मिस भी

जीते जी टूटकर मर जाती है


किसी का सिम भी

टूट कर जियो कहलाता है !

            

कोई नफरत से भरी नजरे

झेलता है उम्रभर के लिये


किसी पर निगाहों से ही

वेशुमार प्यार बरस जाता है

          

कहीं इंसांन को भी टौमी

डब्बू कह कर बुलाते है सभी 


किसी के विस्कुट को अदब से

पारले-जी ही  कहा जाता है !


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- लेखक-सर्वेश शर्मा

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