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उनकी नजर तो देखो , कहीं और ही लगी है - गुरुदीन वर्मा

 

शीर्षक - उनकी नजर तो देखो , कहीं और ही लगी है 

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महफिल भी सजी है , तस्वीर भी लगी है ।

उनकी नजर तो देखो, कहीं और ही लगी है ।।

वो रंग जमाने को , मधुपान कर रहे हैं ।

हम तो यहाँ बैठे , ताली बजा रहे हैं ।।

महफिल भी सजी है -------------------।


पूजेंगे लोग उनको , अपना खुदा समझकर ।

वो रहम भी करेंगे , मुर्दा हमें समझकर ।।

सलाम हम करेंगे , उनको सिर झुकाकर ।

वो हाल भी पूछेंगे , अपनी गरज समझकर ।।

वो ताज पहनने को , चेहरा बदल रहे हैं ।

हम तो यहाँ बैठे , ताली बजा रहे हैं ।।

महफिल भी सजी है -------------------।


वो जुल्म भी करते हैं , रोने नहीं देते हैं ।

वो कत्ल भी करते हैं , मरने नहीं देते हैं ।।

बर्बाद हम होते हैं , आबाद वो होते हैं ।

इंसाफ और धर्म को , वो बेच जो देते हैं ।

रौनक तो वहाँ देखो , दावत वो कर रहे हैं ।

हम तो यहाँ बैठे , ताली बजा रहे हैं ।।

महफिल भी सजी है --------------------।



रचनाकार एवम लेखक- 

गुरुदीन वर्मा उर्फ जी. आज़ाद 

पता- पिण्डवाड़ा, जिला- सिरोही(राजस्थान)

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