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मेरा चाँद - अन्कुर सिंह । आज साहित्य

 


रचना शीर्षक - मेरा चाँद


"छत पर जल्दी आओ, चाँद कहीं छुप न जाए"

"पूजा की थाली तो ले लूं, पता है आप भी व्रत हो, भूख लगी होगी आपको।"

"अरे नहीं यार, मौसम खराब हैं। बारिश होने लगेगी तो बादलों में छिप जायेगा तुम्हारा चाँद।"

"चलिए अब आप चाँद के सामने खड़े हो जाइए, मैं पूजा कर लेती हूं।"

"ऐसे ही हमेशा खुश रहना। अब चलों नीचे, होटल में मैंने खाने का ऑर्डर दें रखा है, पार्सल आता ही होगा।"

"क्यों, चाँद देखकर पानी नहीं पीना है आपको ?"

"कौन कहता है, मेरा चाँद छत केवल छत से दिखता है, और खराब मौसम (समय) में साथ छोड़ बादलों में छुप जाता है? अरे पगली, मेरा चाँद तो हमेशा मेरे साथ रहता है और आज कुछ ज्यादा ही निखर रहा मेरा चाँद।"

" हटिए, कुछ ज्यादा ही तारीफ करते हैं आप मेरी।"

"अब शर्माओं मत चलों नीचे, खाने का पार्सल आ गया होगा। आज तो मुझे अपने चाँद के हाथों से खाना है।"


लेखक - अंकुर सिंह

हरदासीपुर, चंदवक,

जौनपुर, उत्तर प्रदेश- 222129

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