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रचना शीर्षक तहरीर - सर्वेश शर्मा

 

स्वरचित रचना शीर्षक  --- तहरीर


मेरी तहरीर,जरुर 

देगी तेरा दिल चीर

 इस तहरीर में छुपे

 हैं मेरी,दर्दों के तीर


जब भी  ढूंढता हूँ,

फैला के हाथ अपना

नहीं नजर आती उनमें 

मुझे तेरी लकीर


माना कि मजबूत हूँ ,

मैं पत्थर की तरह

 तेरी नजर मुझे क्यों

 है,तोड़ने को अधीर


घायल होकर,दिल 

मेरा,टपकते लहु से

आतुर है लिखवाने को 

तुझसे "मेरी तकदीर"


तेरी नजर का खंजर,

कर देगा लाखों कत्ल

क्यों कमर में, हर वक्त

,रखते हो शमशीर


मेरे घायल तन के हर 

जख्म से रिसता है लहु

हो न जाऐ, मेरा लहु 

रोकते, तेरा दुपट्टा लीरोलीर


सांस अटकी है,इंतजार में,

तेरे,मेरी किसी नस में

 दीदार,देके आ वदलो,

आज मेरे हाथों की लकीर


आवारा सा वदहवास,

तुझे ढूंढता हूँ हर गली में

मेरे टूटकर विखरने से

 पहले तोड़ दो हर जंजीर


मैं मुझमें छुपाकर,तुझे

दिल में,भटकता हूँ कबसे

 विरह की आग में जलती 

तूने नहीं देखी तेरी तस्वीर


मेरी नज्म के टुकड़े करके,

अगर तुम फैंक भी दोगी

कदम चूमेगी तेरे ही

मेरी नज्म की तहरीर


"सर्वेश"का सीना चाहे 

चीरके करदो टुकड़े टुकड़े

मेरी हर जख्मी रग में,

पाओगी  तुम,तेरी ही तस्वीर


स्वरचित सर्वेश शर्मा बठिंडा पंजाब

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