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स्वररचित रचना इनायत - सर्वेश शर्मा । आज साहित्य

 

स्वरचित रचना --  इनायत 


हवा ने हाले दिल वता दिया हमारा

अब इनायत करो यां शिकायत करो


इश्क जिस्मानी नहीं,हो रूह से सदा

तुम रूह से स्वीकार करो,यां न करो


मीरा का कान्हा,,,कान्हा की राधा

 थी चाहत,रूकमण की तकदीर में 


कान्हा का व॔धें मुकद्दर,पे था,विधाता             

 लाचार,तुम ये हकीकत तो स्वीकार करो        


जिस्म तो फना हो ही जाते हैं इक दिन

करना हो तो हमेशा,रूह से ही प्यार करो


इश्क जिस्मानी नहीं, रूह से ही हो सदा

 ये तुम रूह से स्वीकार करो,यां न करो


 मैने तो मेरी रूह से कर दिया,युगों तक  

रहने वाला,तुमसे अपने प्यार का इजहार


तुम जिस्मानी समझके,इस जन्म में,मेरा

तुझसे रूहानी प्यार,स्वीकार करो,न करो     


मेरी जान"तुझमें है, तुझसे है "मेरी जान"                      

मेरी जान तुम ये स्वीकार करो यां न करो       


इजहार किया मैने रूह से रूह का रिश्ता,

मरते दम तक रहे तुमसे,ये रूह का रिश्ता      


तुम अपनी रूह से मेरे साथ निभा पाओगी     

अपने लवों से मुझे ये रिश्ता  इजहार करो 


सर्वेश सदा सदा के लिये बंध जाऐगा तेरी

पाक रूह से,गर तुम रूह से इकरार करो


स्वरचित - सर्वेश शर्मा वठिंडा पंजाब

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