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बहू ही वेटी है - सर्वेश कुमार | आज साहित्य

 

मेरे ख्यालात~ सर्वेश की कलम से

               स्वरचित कविता

 रचना शीर्षक - बहू ही वेटी है 

     

अपनी  वेटी को जिद नहीं               

   संस्कार देने चाहिये

पराई वेटी  की हर घर में

      जिद  पूरी करनी चाहिये

       

वो उम्र भर अपने  बाबुल का

         प्यारा घर भूल जायेगी

उसको चाहने से ससुराल की

       बगिया ही महक जायेगी

         

 ताहने उलहाने किंतु--पंरतु

  हर  सास को छोड़ने चाहिये

प्यार,भरे हाथ, अपनी बेटी वाले      

अपनी वहु के सिर पर वारने चाहिये

          

 महक जायेगा, हर कोना,

  घर का,  प्यार की खुशबू में

रिश्ते दिल के दिल से ही हों

 दिमाग से, नहीं होने चाहिये

        

ससुराल में  बहु चलाती है

हमेशा  वंश ससुर का ही

पति को भी इस बात का

अहसास होना ही चाहिये

      

अंजान  नये घर में आके

रहती है छोड़  बाबुल का घर

उस घर में भी  उस वहु को

समझने वाले साथ होने चाहिये

      

 बच्चा भी स्कूल में कुछ दिन

 दिल नहीं लगाता है

वह  सुबह जाकर स्कूल से

 दोपहर को, लौट आता है

      

आकर  अपनों को सता कर

रूठता है,फिर मान जाता है

ये बातें उसकी  शरारतों का

 प्यारा किस्सा वन जाता है

       

 बहु भी, होती है,  बहु नहीं

लाडली बेटी ही किसी की

जो भूलते है  याद दिला दूँ उन्हे

उनकी वेटी भी है,  बहु किसी की

     

जो अपनी  बेटी को समझाते नहीं

उसकी हर जिद को पुगाते है

वो खुद  बेटी के जीवन में

फूल नहीं कांटे विछाते  है

      

वो लोग  दूसरे के खून को क्यों

  खून के आंसू ,रूलाते है

अपना वंश चलता है  उसके खून

से, ही ये क्यों नहीं,  समझ पाते है

      

आज जो फसल बीजते है

बुढ़ापे में उस फसल को

काट कर न खा पाते है

खुद चीखते चिल्लाते है

     

हर  ससुराल में बहु पर

प्यार  भरकर लुटाना चाहिये 

अपने  बेटे की दुल्हन को

 अपनी वेटी वनाना चाहिये

    

वो कभी देख लेना फिर

 ससुराल की ही हो जायेगी

अपने  बाबुल का आंगन

सदा सदा के लिये  भूल जायेगी

      

दिल के रिश्तों को अपने

अपने दिलों में उतार लो

जी भरके प्यार दे कर उसे

अपनी रग रग में उतार लो

    

आयेगा दिन ऐसा उस दिन ही

जहां में इक ऐसी लहर आयेगी

 बहु सास की जोड़ी, जहां में

"सास बहु" नहीं  "मां-बेटी" कहलायेगी

      

संस्कारी  बेटे -पोते होगें

संस्कारी पोत-बहु आयेगी

 सर्वेश के इस  प्रयास को

जब सास बहुऐं  रंग चढ़ायेगी

     

इस  जहान में देखेंगी नस्लें

 बहु सास, होंगी  सीता कौश्लया

 बेटे होंगें श्रवण~राम~भरत जैसे और

 पोत्रे लवकुश जैसे रघुन॔दन होगें


 लेखक सर्वेश शर्मा

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