नजर - सर्वेश शर्मा | आज साहित्य
नज्म शीर्षक - नजर
नजर मिलाकर लवों में,
मुस्कराने के बाद सनम
अब तो अपने दिल के
भी हालात लिख दो
कभी अंदर कभी बाहर
फिरता हूं, बैचैन सा मैं
कुछ ऐसे ही है,आपके
भी हालात लिख दो.
तीरे नजर से रिसता है
दिल का जख्म मेरा
चुभन कचोटती है दिल
तेरा भी ये बात लिख दो
वहक कर लड़खड़ा कर
डगमगाते है कदम
थामोगे कब, मुझको आकर,
ये ख्यालात लिख दो
सब कुछ कहा मुझे,
मिलाकर इक नजर आपने
खामोश होठों में छुपे हुऐ,
अपने जजबात लिख दो
बहुत रूबरूह होना पड़ा था
सारे शहर की नजर से मुझे
तुझसे है अब मेरा बजूद,
अब तो ये अहसास लिख दो
तेरे इंतजार में ही गुजर
जाता है हर दिन मेरा
मेरे बिन कैसे गुजरती है
तुम्हारी,हर रात लिख दो
कब तक जीऊगां मैं तेरी
यादों में गिरफ्तार होकर
तेरी बाहों मे हो उम्रकैद,
ये सजा आज लिख दो
मैं तड़फता हूं चातक सा
तेरे दीदार की चाह में
कब करोगी मुझ पे अपने
प्यार की वरसात लिख दो
तेरी विरह में मेरी ,कहीं
जान ही न निकल जाऐ
लेकर अपनी बाहों में,तेरे
प्यार की सौगात लिख दो
दिल में,है सावन सा रूदन
,नैनों में अश्कों की जलन
पहलू में तेरे ही,निकलेगा
मेरा अब तो ये दम,
ये हालात लिख दो
हम तो जब तक जिंदा है
तो सिर्फ तेरे लिये है जिंदा
तेरी रूह का भी है मुझसे
बंधन,ये ख्यालात लिख दो
दिन रात,,तेरे ख्याल
छाये है ख्यालों पर मेरे
"सर्वेश"के जहन पे हर
अपने ख्यालात लिख दो
स्वरचित -- सर्वेश शर्मा वठिंडा ,पंजाब
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