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सुभद्राकुमारी चौहान ( Subhdra Kumari Chouhan ) जन्मदिन विशेष कवितायें । Aaj Sahitya

आज हम बात करेंगे हिंदी की उस कवयित्री  के बारे में जो असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली पहली महिला थीं ।

जिसकी खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी काफी प्रसिद्ध है झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को याद करते हुए अनेकों बार ये पंक्तियां पढ़ी गयीं। कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान की लिखी कविता में देश की उस वीरांगना के लिए ओज था, करूण था, स्मृति थी और श्रद्धा भी। इसी एक कविता से उन्हें हिंदी कविता में प्रसिद्धि मिली और वह साहित्य में अमर हो गयीं।

आज साहित्य के मंच पर हिन्दी भाषा साहित्य की महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताएं ( Subhadra Kumari Chauhan poems in hindi ) पढ़ने के लिए आप सभी हिन्दी प्रेमियों का स्वागत है ।

Subhdrakumari Chouhan

1- ठुकरा दो या प्यार करो 


देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं 

सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं 


धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं 

मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं 


मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लायी 

फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आयी 


धूप-दीप-नैवेद्य नहीं है झांकी का श्रृंगार नहीं 

हाय! गले में पहनाने को फूलों का भी हार नहीं 


कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में है माधुर्य नहीं 

मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं 


नहीं दान है, नहीं दक्षिणा खाली हाथ चली आयी 

पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ चली आयी 


पूजा और पुजापा प्रभुवर इसी पुजारिन को समझो 

दान-दक्षिणा और निछावर इसी भिखारिन को समझो 


मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आयी हूँ 

जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आयी हूँ 


चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो 

यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो


2- राखी की चुनौती 


बहिन आज फूली समाती न मन में।

तड़ित आज फूली समाती न घन में।।

घटा है न झूली समाती गगन में।

लता आज फूली समाती न बन में।।


कही राखियाँ है, चमक है कहीं पर,

कही बूँद है, पुष्प प्यारे खिले हैं।

ये आई है राखी, सुहाई है पूनो,

बधाई उन्हें जिनको भाई मिले हैं।।


मैं हूँ बहिन किन्तु भाई नहीं है।

है राखी सजी पर कलाई नहीं है।।

है भादो घटा किन्तु छाई नहीं है।

नहीं है ख़ुशी पर रुलाई नहीं है।।


मेरा बन्धु माँ की पुकारो को सुनकर-

के तैयार हो जेलखाने गया है।

छिनी है जो स्वाधीनता माँ की उसको

वह जालिम के घर में से लाने गया है।।


मुझे गर्व है किन्तु राखी है सूनी।

वह होता, ख़ुशी तो क्या होती न दूनी?

हम मंगल मनावें, वह तपता है धूनी।

है घायल हृदय, दर्द उठता है ख़ूनी।।


है आती मुझे याद चित्तौर गढ की,

धधकती है दिल में वह जौहर की ज्वाला।

है माता-बहिन रो के उसको बुझाती,

कहो भाई, तुमको भी है कुछ कसाला?।।


है, तो बढ़े हाथ, राखी पड़ी है।

रेशम-सी कोमल नहीं यह कड़ी है।।

अजी देखो लोहे की यह हथकड़ी है।

इसी प्रण को लेकर बहिन यह खड़ी है।।


आते हो भाई ? पुनः पूछती हूँ 

कि माता के बन्धन की है लाज तुमको?


तो बन्दी बनो, देखो बन्धन है कैसा,

चुनौती यह राखी की है आज तुमको।।



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