नीरज नीर के शेर, गजल और कविताओं का संग्रह
नीरज नीर की कुछ कविताएं, गीत, गजल और शेर का संग्रह हमने तैयार किया है आप यहां उनके विचार भी पढ़ सकते है । नीरज नीर जाने माने लेखक और कवि है । आप यहां पढ़े ।
(1)
दहशत की जिंदा तस्वीर है आँखों में
यानि लहू बनकर कश्मीर है आँखों में
लाश के ढेर पे लिक्खे वादे झूठे हैं
साँसों ने पहनी ज़ंजीर है आँखों में
लाज़िम है अर्जुन आँखों को देखेंगे
समझो दुख मछली का तीर है आँखों में
- नीरज नीर
(2)
अब जा कर के मुझको ध्यान पड़ा है
अंदर बाहर सब वीरान पड़ा है
घर की चीज़ों के जैसा बिखरा हूँ
मर जाने का हर सामान पड़ा है
लाशों पे चुप्पी का मतलब यानी
फिर से ख़तरे में ईमान पड़ा है
पहला झगड़ा तो इक झोंका था बस
आगे रिश्ते में तूफान पड़ा है
- नीरज नीर
(3)
इल्ज़ाम अपने ही सर आना है
उसने साफ़ मना कर जाना है
दिल की चोट सहेंगे हम लड़के
हमने तो पत्थर भी खाना है
इट्स ओवर बस वो कह सकते हैं
जिनको फिर कोई मिल जाना है
आख़िर शेर कहूंगा कब तक मैं
मैंने भी अब यार कमाना है
- नीरज नीर
(4)
और इक दिन दिल ने भी आख़िर मान लिया
पागल को बस पागल अच्छा लगता है
उन हाथों से पूछो जिसने पहनाए
किन पैरों में पायल अच्छा लगता है?
ये दुनिया छत है माना पर दुनिया के
सर पे माँ का आँचल अच्छा लगता है
पेड़ों से बातें! यानी तन्हा हो तुम
इस मौसम में जंगल अच्छा लगता है
- नीरज नीर
(5)
माँ थकन को ओढ़कर सोने लगा हूँ
मैं वही जो सोता था बस थपकियों से
*
माँ कुछ वादे ख़ुद से होते हैं
वक़्त मिला तो फिर घर आना है
*
ये दुनिया छत है माना पर दुनिया के
सर पे माँ का आँचल अच्छा लगता है
*
एक माँ की आख़िरी ख़्वाहिश है बेटा
लौट आओ घर को ज़िंदा देखना है
*
नीरज नीर
(6)
आँख में आँसू निशानी है किसी की
पानी की क़ीमत न पूछो मछलियों से
~ नीरज 'नीर'
(7)
प्रेम में...
पहले बदन के हिस्से आती है मजदूरी
फिर सांसों को दिहाड़ी पर रखा जाता है
:
और एक दिन न मजदूर बचता है न उसकी मजदूरी..
बचता है तो बस प्रेम
मजदूर के फावड़े की तरह ।
- नीरज नीर
(8)
बेवफ़ा नाम है क्या? अजी नईं
तो ये इल्ज़ाम है क्या? अजी नईं
सच में क्या दुख हमें माँजता है?
रो के आराम है क्या? अजी नईं
हिज्र को जानना किसलिए फिर
दर्द नीलाम है क्या? अजी नईं
जाने वाले चले जाते हैं बस!
कोई पैग़ाम है क्या? अजी नईं
- नीरज नीर
(9)
कोई भी हो किसी भी तबके से
जात पूछी न जाए भूखे से
सबसे महँगी नज़र मुहब्बत की
वरना तन मिट्टी लोग सस्ते से
इश्क़ है तो है उम्र तुम देखो
मैं नही डरता 'आग' छूने से
- नीरज नीर
(10)
तुम जब अपना कहती हो तो मैं तुम हूँ
मैं जब तुम्हें अपना कहता हूँ तो तुम मैं
मैं और तुम हम क्यों नहीं हैं?
आख़िर मैं और तुम मिलकर ही तो हम होंगे न?
'मिलकर' से याद आया!
हम अब तक मिले नहीं हैं
हम अभी भी बस 'भीड़' है.
- नीरज नीर
नीरज नीर ( Neeraj Neer) के शेर गजल कविता आपको हमारे ब्लॉग पर पढ़ने को मिलते रहेंगे । हम उनके द्वारा शेयर किए गए संग्रह को यहां प्रकाशित करते रहेंगे । हम विभिन्न लेखक और कवियों के विचार और संग्रह प्रकाशित करते है ।
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