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रचना ( चांद ) : डॉक्टर महिमा सिंह । आज साहित्य


 चांद


चांद भटकता क्यूं रहता हैं,

रुक क्यों नहीं जाता रात के आगोश में,

बादलों के झुरमुट में,

तलाश में रहता है रहबर की 

जो वादा करके आने का

बादलों की ओट में मानो

छुप गया।

अक्स उसका नयनों मे लिए 

फिरता है, मुकम्मल हो तो 

ठहर जाऊं।

वो है कि बस एक झलक दिखला कर फिर ओझल हो गया।

धड़कन बेताब है तेरी आहट को

तू जो ना आ सके तो ख्वाबों में ही आंके फेरा लगा जा कुछ 

तो तसल्ली मेरे 

पहले प्यार को दें जा।

हर दहलीज पर जाता

 हो क्या जाने कहां 

जा निशार हो जाए 

बस उस एक मुलाकात

 के लिए ही

 फिरता हूं दर ब दर ।

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लेखिका : डाक्टर महिमा सिंह

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